वृक्क (किडनी): शरीर में एक जोड़ी वृक्क होते हैं, जो पीठ के निचले हिस्से में कशेरुक दण्ड के दोनों ओर स्थित होते हैं। वृक्क सेम के बीज जैसी गहरे लाल रंग की संरचना वाले अंग होते हैं, जिनका आकार लगभग 10–12 सेमी लंबा और 5–7 सेमी चौड़ा होता है। वृक्कों का बाहरी भाग कोर्टेक्स व भीतरी भाग मेडुला कहलाता है। वृक्क की कार्यात्मक इकाई नेफ्रॉन होती है।
मूत्रवाहिनी (Ureter): प्रत्येक वृक्क से एक मूत्रवाहिनी निकलती है, जो लगभग 25–30 सेमी लंबी एक नलिका होती है।
मूत्राशय (Urinary Bladder): मूत्रवाहिनियों द्वारा लाया गया मूत्र मूत्राशय में संग्रहित होता है। यह थैली जैसी संरचना मूत्र को अस्थायी रूप से संचित करती है।
मूत्रमार्ग (Urethra): मूत्राशय से एक पतली नलिका निकलती है, जिसे मूत्रमार्ग कहते हैं। इसके द्वारा मूत्र शरीर से बाहर निष्कासित होता है।
विभिन्न अंगों के कार्य
वृक्क: रक्त में से अपशिष्ट पदार्थ, जैसे यूरिया, यूरिक अम्ल, अतिरिक्त जल एवं लवण को छानकर मूत्र का निर्माण करते हैं। वृक्क शरीर में तरल पदार्थ की मात्रा एवं रासायनिक संतुलन बनाए रखते हैं। वृक्क के कार्य न करने पर डायलिसिस की आवश्यकता होती है।
मूत्रवाहिनी: यह वृक्क से मूत्र को मूत्राशय तक पहुँचाती है।
मूत्राशय: यहाँ मूत्र संचित किया जाता है जब तक कि वह बाहर निष्कसित होने के लिए तैयार न हो जाए।
मूत्रमार्ग: मूत्राशय से संचित मूत्र को बाहर निकालती है। पुरुषों में यह वीर्य का भी संवहन करती है।
अन्य उत्सर्जी अंग
त्वचा, फेफड़े और यकृत भी अतिरिक्त उत्सर्जन कार्य करते हैं, जैसे त्वचा द्वारा पसीना निकालना, फेफड़े द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कासन, तथा यकृत द्वारा विषैले पदार्थों का अपसर्जन।

If you have any doubts, Please let me know.