कंपनी का शासन
1773 से 1858 तक
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By Vinod Kumar
1773 का रेगुलेटींग एक्ट : -
· भारत मे ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दिशा मे ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया यह पहला कदम था ।
· इसके द्वारा पहली बार कंपनी के प्रशासनिक और राजनैतिक कार्यों को मान्यता मिली ।
· इसके द्वारा भारत मे केन्द्रीय प्रशासन की नीव रखी गई ।
अधिनियम की विशेषताएं : -
· बंगाल के गवर्नर का का जनरल पद नाम दिया गया ।
· उसकी सहायता के लिए एक चार सदस्यीय कार्यकारी परिषद का गठन किया गया ।
· कलकत्ता मे 1774 मे एक उच्चत्तम न्यायालय की स्थापना की गई ।
· पहले गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंगस थे ।
1784 का पिट्स इंडिया एक्ट :-
· इसने कंपनी के राजनैतिक और वाणिज्यिक कार्यों का पृथक – पृथक कर दिया ।
· इसने निदेशक मण्डल को कंपनी के व्यपरिक मामलों के अधीक्षण की अनुमति तो दे दी , लेकिन राजनैतिक मामलों के प्रबंधन के लिए नियंत्रण बोर्ड ( बोर्ड ऑफ कंट्रोल ) नाम से एक नए निकाय का गठन किया गया । इस प्रकार द्वैधशासन की व्यवस्था का शुभारंभ किया गया ।
इस प्रकार , यह अधिनियम दो कारणों से महत्वपूर्ण था –
i. भारत मे कंपनी के अधीन क्षेत्र को पहली बार “ ब्रिटिश आधिपत्य का क्षेत्र “ कहा गया ।
ii. ब्रिटिश सरकार को भारत मे कंपनी के कार्यों और इसके प्रशासन पर पुन नियंत्रण प्रदान किया गया ।
1833 का चार्टर अधिनियम : -
· इसने बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया ।
· जिससे सभी नागरिक आर सैन्य शक्तियां निहित थी ।
· इस अधिनियम ने पहली बार एसी सरकार का निर्माण किया जिसका ,ब्रिटिश कब्जे वाले सम्पूर्ण भारतीय क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण था ।
· इसने मद्रास और बंबई के गवर्नरो को विधायिका संबंधी शक्ति से वंचित कर दिया ।
· भारत के गवर्नर जनरल को पूरे ब्रिटिश भारत मे विधायिका के सैमीट अधिकार प्रदान कर दिए गये ।
1853 का चार्टर अधिनियम : -
· इसने पहली बार गवर्नर जनरल परिषद के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया ।
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