चिपको आंदोलन भारत में 1970 के दशक में शुरू हुआ एक प्रसिद्ध पर्यावरणीय आंदोलन था, जिसमें ग्रामीण खासकर महिलाएं पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए अहिंसक तरीके से पेड़ों को गले लगाकर उनके संरक्षण की मांग की। इस आंदोलन का मूल उद्देश्य वनों की कटाई को रोकना और स्थानीय लोगों के वनाधिकारों की रक्षा करना था। यह आंदोलन उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा) के चमोली जिले में 1973 में आरंभ हुआ था।
चिपको आंदोलन का इतिहास और कारण
(i) चिपको आंदोलन की शुरुआत उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में हुई जब स्थानीय लोग, विशेषकर महिलाएं, अपने जंगलों को व्यावसायिक वृक्षों की कटाई से बचाने के लिए अपने पारंपरिक वनाधिकारों की रक्षा के लिए उठ खड़े हुए।
(ii ) इस आंदोलन में ग्रामीणों ने पेड़ों को गले लगाकर या उनकी जड़ों से चिपक कर वनों की कटाई को रोकने का अहिंसक विरोध किया। इसलिए इसे 'चिपको' (गले लगाने) आंदोलन कहा गया।
(iii) इस आंदोलन की प्रेरणा और असर से भारत में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ी और बाद में कई नीतिगत बदलाव हुए, जैसे कि 1980 में हिमालयी वनों में पेड़ कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगाना।
प्रमुख नेता और संस्थापक
(i) चिपको आंदोलन के प्रमुख संस्थापक थे सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट, और गौरादेवी, जिन्होंने स्थानीय ग्रामीणों, विशेषकर महिलाओं को संगठित किया।
(ii )गौरा देवी ने विशेष रूप से 1974 में रेनी गांव में अपने जीवन की आहुति देकर इस आंदोलन को मजबूत किया, जब उन्होंने ठेकेदारों को पेड़ कटाने से रोकने के लिए अपने शरीर को ढाल बनाया।
(iii) सुंदरलाल बहुगुणा को 'पर्यावरण गांधी' भी कहा जाता है, जिन्होंने पूरे आंदोलन को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलाने में अहम भूमिका निभाई।
आंदोलन के उद्देश्य और प्रभाव
(i) चिपको आंदोलन का उद्देश्य वनों की अंधाधुंध कटाई रोकना, पर्यावरण संरक्षण करना, और स्थानीय लोगों के वनाधिकारों को सुरक्षित करना था।
(ii) इस आंदोलन से प्रेरित होकर भारत में वनों का संरक्षण कानून सख्त हुआ और पर्यावरण मंत्रालय की स्थापना हुई।
(ii) कई अन्य पर्यावरणीय आंदोलनों को भी इसमें प्रेरणा मिली, जैसे नर्मदा बचाओ आंदोलन।
(iv) यह आंदोलन महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सकारात्मक बदलाव का उदाहरण भी माना जाता है, क्योंकि इसने महिलाओं को नेतृत्व और सामूहिक कार्रवाई के लिए प्रोत्साहित किया।
सारांश
चिपको आंदोलन 1973 में उत्तराखंड के चमोली जिले में शुरू हुआ एक अहिंसक, पर्यावरणीय और सामाजिक आंदोलन था, जिसमें स्थानीय लोग, खासकर महिलाएं, पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए पेड़ों को गले लगाकर विरोध किया। इसके प्रमुख नेता सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट, और गौरा देवी थे। इस आंदोलन ने भारत में पर्यावरण संरक्षण की नई दिशा दी तथा वन नीति, कानूनों और सामाजिक जागरूकता को मजबूती दी। यह आंदोलन महिलाओं के नेतृत्व और अहिंसक प्रतिरोध का उदाहरण भी बना।
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