स्थापना और इतिहास
- स्थापना: 1 अप्रैल 1935
- राष्ट्रीयकरण: 1 जनवरी 1949
- मुख्यालय: मुंबई, महाराष्ट्र
उद्देश्य और कार्य
RBI का मुख्य उद्देश्य भारत में मौद्रिक स्थिरता बनाए रखना और देश की आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। इसके तहत यह विभिन्न कार्य करता है:
1. मौद्रिक नीति का संचालन:
- मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना
- ब्याज दरों का निर्धारण
- मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करना
2. बैंकिंग विनियमन और पर्यवेक्षण:
- वाणिज्यिक बैंकों और वित्तीय संस्थानों की निगरानी
- नए बैंक लाइसेंस जारी करना
- बैंकों का लेखा परीक्षा
3. विदेशी मुद्रा प्रबंधन:
- विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन
- विदेशी मुद्रा दर का नियंत्रण
4. भुगतान और निपटान प्रणाली का विकास:
- राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली का विकास
- डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना
5. वित्तीय समावेशन:
- ग्रामीण और वंचित वर्गों को बैंकिंग सेवाएं प्रदान करना
- माइक्रोफाइनेंस और छोटे कर्जों को बढ़ावा देना
संरचना
- गवर्नर: RBI का प्रमुख होता है, जो सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- डिप्टी गवर्नर: चार डिप्टी गवर्नर होते हैं, जो विभिन्न विभागों का नेतृत्व करते हैं।
- बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स: इसमें सरकार द्वारा नामित सदस्य शामिल होते हैं, जो नीतियों का निर्धारण करते हैं।
प्रमुख पहल और नीतियाँ
1. प्रधानमंत्री जन-धन योजना: वंचित वर्गों को बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने की पहल।
2. डिजिटल इंडिया: डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न नीतियाँ।
3. मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण: मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिए नीतिगत कदम।
RBI के चुनौतियाँ
1. मुद्रास्फीति: मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखना।
2. बैंकिंग प्रणाली की स्थिरता: एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स) की समस्या से निपटना।
3. डिजिटल सुरक्षा: साइबर हमलों से बैंकिंग प्रणाली की सुरक्षा।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की कुछ अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं और उसकी कार्यप्रणाली के बारे में विस्तार से जानकारी:
मौद्रिक नीति और उपकरण
RBI मौद्रिक नीति के तहत विभिन्न उपकरणों का उपयोग करता है ताकि मुद्रास्फीति और अर्थव्यवस्था की स्थिरता बनाए रखी जा सके:
- रेपो दर: वह दर जिस पर वाणिज्यिक बैंक RBI से लघुकालिक कर्ज लेते हैं। इसे घटाकर या बढ़ाकर RBI बाजार में नकदी की उपलब्धता को नियंत्रित करता है।
- रिवर्स रेपो दर: वह दर जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों से नकदी उधार लेता है।
- सीआरआर (Cash Reserve Ratio): वाणिज्यिक बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का एक निश्चित प्रतिशत RBI के पास रखना पड़ता है।
- एसएलआर (Statutory Liquidity Ratio): वाणिज्यिक बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का एक निश्चित प्रतिशत नकदी, स्वर्ण या सरकारी प्रतिभूतियों में रखना होता है।
वित्तीय स्थिरता और विनियमन
RBI वित्तीय स्थिरता और बैंकिंग प्रणाली की सुरक्षा के लिए विभिन्न कदम उठाता है:
- प्रूडेंशियल नॉर्म्स: बैंकों के लिए जोखिम प्रबंधन और कैपिटल पर्याप्तता मानदंड तय करना।
- नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (NPAs): बैंकों की एनपीए की समस्या का समाधान करने के लिए नीतियाँ और प्रक्रियाएँ लागू करना।
- स्ट्रेस टेस्टिंग: बैंकों की वित्तीय स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए स्ट्रेस टेस्ट करना।
भुगतान और निपटान प्रणाली
RBI डिजिटल भुगतान और निपटान प्रणाली को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है:
- नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT): यह एक इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली है जो बैंकों के बीच फंड ट्रांसफर की सुविधा प्रदान करती है।
- रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS): यह एक रियल-टाइम भुगतान प्रणाली है जो उच्च-मूल्य के लेनदेन के लिए उपयोग की जाती है।
- यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI): यह एक त्वरित भुगतान प्रणाली है जो विभिन्न बैंक खातों के बीच तुरंत धनराशि ट्रांसफर की सुविधा प्रदान करती है।
ग्राहक संरक्षण
RBI बैंकिंग ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा के लिए विभिन्न कदम उठाता है:
- ओम्बुड्समैन स्कीम: बैंकिंग सेवाओं से संबंधित शिकायतों के निवारण के लिए।
- ग्राहक सेवा समितियाँ: बैंकों में ग्राहक सेवा में सुधार के लिए समितियों का गठन।
- धोखाधड़ी प्रबंधन: बैंकिंग धोखाधड़ी से बचाव के लिए दिशानिर्देश और उपाय।
रिसर्च और विकास
RBI आर्थिक अनुसंधान और विश्लेषण के लिए कई पहल करता है:
- आर्थिक रिपोर्ट्स: विभिन्न आर्थिक रिपोर्ट्स और अध्ययन प्रकाशित करना।
- वित्तीय साक्षरता: आम जनता के बीच वित्तीय साक्षरता बढ़ाने के लिए कार्यक्रम चलाना।
- नवाचार: बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं में नवाचार को बढ़ावा देना।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
RBI अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सक्रिय है और अन्य केंद्रीय बैंकों और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ सहयोग करता है:
- विनिमय और नीति समन्वय: अन्य केंद्रीय बैंकों के साथ नीति समन्वय और विनिमय।
- बासेल कमिटी: बासेल कमिटी ऑन बैंकिंग सुपरविजन (BCBS) का सदस्य, जो बैंकिंग विनियमन के लिए वैश्विक मानक निर्धारित करता है।
- आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD): OECD के साथ सहयोग और आर्थिक नीतियों का विकास।
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