दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाला प्रथम सुल्तान गुलाम
वंश के थे।
गुलाम वंश की स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया था।
गुलाम वंश को मामलुक वंश या दास वंश भी कहा जाता है।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी को समर्पित
कुतुब मीनार का निर्माण प्रारंभ करवाया।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुवत उल इस्लाम मस्जिद का निर्माण दिल्ली
में कराया ।
अड़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने
अजमेर में करवाया था ।
कुतुबुद्दीन ऐबक को लाख बख्श भी कहा जाता था।
कुतुबुद्दीन ऐबक साहित्य का महान संरक्षक था ।
कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु 1210 ईस्वी में चौगान या पोलो खेलते
समय घोड़े से गिरकर लाहौर में हुआ था।
कुतुबुद्दीन ऐबक के मृत्यु बाद आराम शाह दिल्ली सल्तनत का शासक
बना।
रणथंभौर को जीतने वाला प्रथम तुर्क शासक इल्तुतमिश था।
इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक भी कहा
जाता है।
इल्तुतमिश ने चांदी का डंका और तांबे का जीतल प्रचलित किया।
शुद्ध अरबी सिक्के चलाने वाला प्रथम तुर्क सुल्तान इल्तुतमिश था।
जिसने सिक्कों पर टकसाल का नाम लिखने की परंपरा को भी
प्रारंभ किया था।
इस दूध में स्नेह ग्वालियर विजय के बाद सिखों पर रजिया का नाम
लिखवाया था।
इल्तुतमिश ने भारत में इक्ता प्रणाली की सुव्यवस्थित रूप से शुरु
आत किया था।
व्यवस्थित न्याय प्रणाली के लिए नगरों में काजी तथा अमीर ए दाद
की नियुक्ति किया।
प्रशासन को संगठित करने के उद्देश्य से उसने चालीसा तुर्क सरदारों
के एक गुट चलीसा तुर्कान ए चहलगानी का गठन किया।
इल्तुतमिश ने कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा प्रारंभ की गई कुतुबमीनार
को पूर्ण करवाया था ।
इल्तुतमिश ने बदायूं में हौज शम्सी और शम्सी ईदगाह तथा जोधपुर
में अतारकीन दरवाजा बनवाया था।
साहित्य में दिल्ली को हजराते दिल्ली भी कहा जाता है।
इल्तुतमिश ने 1229 ई में अब्बासी खलीफा से मंसूर प्राप्त कर राज्य
को वैधता प्रदान किया था ।
दिल्ली सल्तनत पर राज करने वाली पहली मुस्लिम शासिका थी।
बलबन इल्तुतमिश का दास था ।
रक्त और लौह की नीति बलबन ने अपनाया था।
बलबन का राजत्व सिद्धांत, राजस्व के ईरानी सिद्धांत पर आधारित था।
बलबन ने राजत्व संबन्धित बलबन के विचार उसकी वसाया में संकलित है ।
बलबन के समय जिल्लीलाह का मतलब ईश्वर की छाया होता था।
बलबन के समय नियाबते खुदाई का मतलब ईश्वर का प्रतिनिधि कहा जाता था।
दीवान ए अर्ज का मतलब सैन्य विभाग होता था।


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