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सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil disobedience movement)

 सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी जी की दांडी मार्च के साथ हुआ था।


सविनय अवज्ञा आंदोलन ब्रिटिश सरकार द्वारा अपनाए गए नमक एकाधिकार के मुद्दे पर शुरू हुआ था ।
अपने 78 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से लगभग 375 किलोमीटर की दूरी गुजरात के समुद्र तट पर स्थित गांव दांडी में उन्होंने 6 अप्रैल को नमक कानून को बंद किया था।
अमेरिकी पत्रकार वेब मिलर ने महात्मा गांधी के साथ दांडी मार्च में पत्रकारिता की थी।
नमक कानून तोड़ने के लिए जब महात्मा गांधी को गिरफ्तार किया गया तो आंदोलन के नेता के रूप में अब्बास तैयब जी ने उनका स्थान लिया था।
सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी ने नमक सत्याग्रह की तुलना नेपोलियन के एल्बा से पेरिस यात्रा से की है।
मालाबार में वायकुम सत्याग्रह के नायक के कलप्पन कालीकट से पेन्नार तक की नमक यात्रा की ।
खान अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व में गठित खुदाई खिदमतगार संगठन ने इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । खुदाई खिदमतगारो को लाल कुर्ती के नाम से भी जाना जाता था।
गढ़वाल रेजीमेंट की टुकड़ियों ने पेशावर में निहत्थे भीड़ पर गोली चलाने से इंकार कर दिया था।
तमिलनाडु के तंजौर में समुद्र तट पर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने त्रिचनापल्ली से वेदारनयम तक नमक यात्रा आरंभ किया।
गांधीजी ने यरवदा जेल को मंदिर नाम दिया था ।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान लड़कों को वानर सेना तथा लड़कियों की मंजरी सेना का गठन किया गया था।
जवाहरलाल नेहरू एवं मोतीलाल नेहरू को गांधी जी से मिलाने के लिए यरवदा जेल से स्थानांतरित कर दिया ताकि सरकार के साथ समझौते की संभावना के संबंध में विचार विमर्श कर सके ।
धरसाना में सरोजिनी नायडू ,इमाम साहब एवं मानिक लाल के नेतृत्व में पहुंची भीड़ को पुलिस ने लोहे की नीति वाली लाठियों से बुरी तरह पीटा था।
मणिपुर में जनजाति समाज के लोगों ने भी सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया था मणिपुर की 13 वर्षीय नागा किशोरी गैंडीलयू ने अपना नागा साथियों के साथ मिलकर इस आंदोलन में भागीदारी किया था।
असम में कनिंघम सर्कुलर के विरोध में छात्रों ने आंदोलन चलाया पूर्वी भारत में "कर ना देने " तथा " लगान न देने " संबंधी आंदोलन चलाए गए।
1 जनवरी 1932 को सविनय अवज्ञा आंदोलन को पुनः शुरुआत किया गया था ।
कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से मई 1933 में इस आंदोलन को समाप्त कर दिया तथा मई 1934 में से वापस ले लिया गया था।

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