मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) भारत सरकार की ग्रामीण विकास के लिए शुरू की गई दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार गारंटी योजना है। इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों को आर्थिक सुरक्षा देना है, जिससे वे कम से कम 100 दिनों का अकुशल श्रमिक कार्य प्रति वर्ष (प्रत्येक परिवार को) प्राप्त कर सकें।
मुख्य बिंदु:
मनरेगा अधिनियम 2005 में संसद से पारित हुआ और 2 फरवरी 2006 को लागू किया गया।
ग्रामीण परिवार के वयस्क (18 वर्ष या उससे अधिक) सदस्य, जो शारीरिक रूप से श्रम करने में सक्षम हैं, इसके लिए आवेदन कर सकते हैं।
योजना के अंतर्गत 100 दिनों के लिए गारंटीकृत मजदूरी रोजगार दिया जाता है, यदि 15 दिनों में काम नहीं मिलता तो बेरोजगारी भत्ता भी देय है।
योजना के अंतर्गत न्यूनतम मजदूरी का भुगतान राज्य सरकार द्वारा निर्धारित दर पर किया जाता है।
टिकाऊ संपत्तियां जैसे सड़क, नहर, तालाब, जल संरक्षण, पौधारोपण आदि की निर्माण/संरक्षण कार्यों को प्राथमिकता दी जाती है।
मनरेगा आवेदन के लिए ग्राम पंचायत में पंजीकरण जरूरी है; आवेदक को जॉब कार्ड जारी किया जाता है।
वेतन सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में DBT के माध्यम से जाता है।
यदि काम आवेदनकर्ता के गांव से 5 किमी से दूर मिलता है, तो अतिरिक्त यात्रा भत्ता देय है।
योजना का कार्यान्वयन ग्राम पंचायत द्वारा होता है; ठेकेदारों को कार्यक्रम में शामिल नहीं किया जाता।
योजना ग्रामीण महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और कमजोर वर्ग के सशक्तिकरण में प्रभावी है।
साल 2024-25 में बजट 86,000 करोड़ रु. आवंटित हुआ, और मजदूरी दर में करीब 7% की वृद्धि की गई।
पात्रता:
लाभ और कार्य:
आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, गरीबी में कमी, पलायन को रोकना।
गांवों में जल संरक्षण, पौधारोपण, सड़क/नहर निर्माण, सूखा राहत जैसी टिकाऊ संपत्तियों का विकास।
चुनौतियां:
प्रशासनिक अनियमितता, भ्रष्ट्राचार, समय पर भुगतान न होना, जागरूकता की कमी जैसी समस्याएं भी योजना के संचालन में हैं।
इस प्रकार, मनरेगा गरीबों के लिए 'काम के अधिकार' की कानूनी गारंटी है, जो न केवल रोजगार सुरक्षा देता है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र विकास और सामाजिक सशक्तिकरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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