सामाजिक स्थिति:
1. बाल विवाह: भारतीय समाज में बाल विवाह एक आम प्रथा थी। लड़कियों का विवाह बहुत ही कम उम्र में कर दिया जाता था, जिससे उनकी शिक्षा और व्यक्तिगत विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता था। यह प्रथा लड़कियों के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक थी, क्योंकि छोटी उम्र में गर्भधारण से कई स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती थीं।
2. सती प्रथा: सती प्रथा में विधवा महिलाओं को अपने पति की मृत्यु के बाद उसकी चिता पर जीवित जलने के लिए मजबूर किया जाता था। यह एक क्रूर प्रथा थी जिसे समाज सुधारक राजा राम मोहन राय ने समाप्त करने के लिए कड़ा संघर्ष किया। 1829 में ब्रिटिश शासन के तहत इस प्रथा को कानूनन प्रतिबंधित कर दिया गया।
3. विधवा जीवन: विधवाओं की स्थिति समाज में अत्यंत दयनीय थी। उन्हें अशुभ माना जाता था और उन्हें समाज से अलग-थलग कर दिया जाता था। उन्हें सफेद कपड़े पहनने के लिए मजबूर किया जाता था और कई धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति नहीं थी।
4. पर्दा प्रथा: पर्दा प्रथा में महिलाओं को समाज से अलग-थलग रखा जाता था। उन्हें घर से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी और अगर जाती भी थीं तो उन्हें पर्दे में रहना पड़ता था। यह प्रथा महिलाओं की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को बाधित करती थी।
आर्थिक स्थिति:
1. स्वतंत्र आर्थिक साधनों की कमी: महिलाओं के पास स्वतंत्र रूप से आर्थिक साधन नहीं होते थे। उनकी संपत्ति और आर्थिक स्थिति पूरी तरह से उनके पति या पिता पर निर्भर थी। कामकाजी महिलाओं को भी कम वेतन दिया जाता था और उनके काम का मूल्यांकन पुरुषों की तुलना में कम किया जाता था।
2. श्रम का मूल्य: घर के कामकाज को आर्थिक दृष्टिकोण से महत्व नहीं दिया जाता था। घरेलू कामकाज, बच्चों की देखभाल और अन्य परिवारिक जिम्मेदारियों को महिलाओं का कर्तव्य माना जाता था और इसे समाज में सम्मानित नहीं किया जाता था।
शैक्षिक स्थिति:
1. शिक्षा की कमी: महिलाओं की शिक्षा पर समाज में ध्यान नहीं दिया जाता था। उच्च वर्ग के कुछ परिवारों में ही लड़कियों को शिक्षा मिल पाती थी। सामान्यत: लड़कियों को पढ़ने-लिखने की आवश्यकता नहीं समझी जाती थी और उन्हें केवल घरेलू कार्यों के लिए तैयार किया जाता था।
2. साक्षरता दर: महिलाओं की साक्षरता दर बहुत कम थी। शिक्षित महिलाओं की संख्या नगण्य थी और उन्हें भी सामान्यत: धार्मिक और पारंपरिक शिक्षाओं तक सीमित रखा जाता था।
राजनीतिक स्थिति:
1. राजनीतिक अधिकारों की कमी: महिलाओं के पास कोई राजनीतिक अधिकार नहीं था। उन्हें चुनावों में भाग लेने या मतदान करने का अधिकार नहीं था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ी, लेकिन स्वतंत्रता से पहले यह बहुत ही सीमित थी।
2. सार्वजनिक जीवन में भागीदारी: महिलाओं की सार्वजनिक जीवन में भागीदारी नगण्य थी। उन्हें सामाजिक और राजनीतिक आयोजनों में भाग लेने की अनुमति नहीं थी और उनकी भूमिका केवल घरेलू कामकाज तक सीमित थी।
सुधार आंदोलन:
1. राजा राम मोहन राय: उन्होंने सती प्रथा के खिलाफ अभियान चलाया और इसके उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों के पक्ष में भी काम किया।
2. इश्वरचन्द्र विद्यासागर: उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में आंदोलन चलाया और इसे वैध कराने के लिए कानूनी प्रयास किए। उनके प्रयासों से विधवा पुनर्विवाह को सामाजिक स्वीकृति मिली।
3. महात्मा गांधी: गांधी जी ने महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाई। उन्होंने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने और समाज में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया।
स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका:
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सरोजिनी नायडू, कमला नेहरू, विजयलक्ष्मी पंडित, और अरुणा आसफ अली जैसी महिलाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई। उन्होंने न केवल विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया, बल्कि अन्य महिलाओं को भी प्रेरित किया।
1. बाल विवाह: भारतीय समाज में बाल विवाह एक आम प्रथा थी। लड़कियों का विवाह बहुत ही कम उम्र में कर दिया जाता था, जिससे उनकी शिक्षा और व्यक्तिगत विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता था। यह प्रथा लड़कियों के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक थी, क्योंकि छोटी उम्र में गर्भधारण से कई स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती थीं।
2. सती प्रथा: सती प्रथा में विधवा महिलाओं को अपने पति की मृत्यु के बाद उसकी चिता पर जीवित जलने के लिए मजबूर किया जाता था। यह एक क्रूर प्रथा थी जिसे समाज सुधारक राजा राम मोहन राय ने समाप्त करने के लिए कड़ा संघर्ष किया। 1829 में ब्रिटिश शासन के तहत इस प्रथा को कानूनन प्रतिबंधित कर दिया गया।
3. विधवा जीवन: विधवाओं की स्थिति समाज में अत्यंत दयनीय थी। उन्हें अशुभ माना जाता था और उन्हें समाज से अलग-थलग कर दिया जाता था। उन्हें सफेद कपड़े पहनने के लिए मजबूर किया जाता था और कई धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति नहीं थी।
4. पर्दा प्रथा: पर्दा प्रथा में महिलाओं को समाज से अलग-थलग रखा जाता था। उन्हें घर से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी और अगर जाती भी थीं तो उन्हें पर्दे में रहना पड़ता था। यह प्रथा महिलाओं की स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को बाधित करती थी।
आर्थिक स्थिति:
1. स्वतंत्र आर्थिक साधनों की कमी: महिलाओं के पास स्वतंत्र रूप से आर्थिक साधन नहीं होते थे। उनकी संपत्ति और आर्थिक स्थिति पूरी तरह से उनके पति या पिता पर निर्भर थी। कामकाजी महिलाओं को भी कम वेतन दिया जाता था और उनके काम का मूल्यांकन पुरुषों की तुलना में कम किया जाता था।
2. श्रम का मूल्य: घर के कामकाज को आर्थिक दृष्टिकोण से महत्व नहीं दिया जाता था। घरेलू कामकाज, बच्चों की देखभाल और अन्य परिवारिक जिम्मेदारियों को महिलाओं का कर्तव्य माना जाता था और इसे समाज में सम्मानित नहीं किया जाता था।
शैक्षिक स्थिति:
1. शिक्षा की कमी: महिलाओं की शिक्षा पर समाज में ध्यान नहीं दिया जाता था। उच्च वर्ग के कुछ परिवारों में ही लड़कियों को शिक्षा मिल पाती थी। सामान्यत: लड़कियों को पढ़ने-लिखने की आवश्यकता नहीं समझी जाती थी और उन्हें केवल घरेलू कार्यों के लिए तैयार किया जाता था।
2. साक्षरता दर: महिलाओं की साक्षरता दर बहुत कम थी। शिक्षित महिलाओं की संख्या नगण्य थी और उन्हें भी सामान्यत: धार्मिक और पारंपरिक शिक्षाओं तक सीमित रखा जाता था।
राजनीतिक स्थिति:
1. राजनीतिक अधिकारों की कमी: महिलाओं के पास कोई राजनीतिक अधिकार नहीं था। उन्हें चुनावों में भाग लेने या मतदान करने का अधिकार नहीं था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ी, लेकिन स्वतंत्रता से पहले यह बहुत ही सीमित थी।
2. सार्वजनिक जीवन में भागीदारी: महिलाओं की सार्वजनिक जीवन में भागीदारी नगण्य थी। उन्हें सामाजिक और राजनीतिक आयोजनों में भाग लेने की अनुमति नहीं थी और उनकी भूमिका केवल घरेलू कामकाज तक सीमित थी।
सुधार आंदोलन:
1. राजा राम मोहन राय: उन्होंने सती प्रथा के खिलाफ अभियान चलाया और इसके उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों के पक्ष में भी काम किया।
2. इश्वरचन्द्र विद्यासागर: उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में आंदोलन चलाया और इसे वैध कराने के लिए कानूनी प्रयास किए। उनके प्रयासों से विधवा पुनर्विवाह को सामाजिक स्वीकृति मिली।
3. महात्मा गांधी: गांधी जी ने महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाई। उन्होंने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने और समाज में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया।
स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका:
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सरोजिनी नायडू, कमला नेहरू, विजयलक्ष्मी पंडित, और अरुणा आसफ अली जैसी महिलाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई। उन्होंने न केवल विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया, बल्कि अन्य महिलाओं को भी प्रेरित किया।

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