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मिट्टी ( Soils )

 


परिचय 

पौधों की उत्पत्ति एवं विकास में सहायक महीन कर्णयुक्त और ह्यूमस वाले मेंटल के ऊपरी परत के अपक्षिवित पदार्थ को मृदा कहते हैं I मृदा में मुलाकात खनिज चट्टान के कारण अब जैविक पदार्थ की एक विशेष मात्रा , मृदा जल, मृदा वायुमंडल जीवाणुओं की उपस्थिति होती है जिनके बीच एक जटिल और गतिज संबंध होता है I 

प्राकृतिक रूप से उपलब्ध मृदा पर कई कारकों का प्रभाव होता है

  • मूल चट्टान

  •  उच्चावच 

  •  जलवायु

  •  भौतिक रासायनिक और जैविक गुण

  •  भू उपयोग की विधि

  •  समय


 सामान्यता मृदा चार तत्वों से बनी होती है


  1. अजैविक या खनिज पदार्थ ( मूल चट्टान से प्राप्त )

  2. जैविक पदार्थ ( पौधों एवं पशुओं के अपघटन से प्राप्त )

  3. हवा 

  4. जल 

भारत में मृदा का वर्गीकरण

भारतीय मृदा का प्रथम वैज्ञानिक वर्गीकरण वोयलकर और लीदर ने किया था I इनके अनुसार भारतीय मृदा को चार वर्गों में बांटा गया (i) जलोढ़ (ii) काली मिट्टी (रेगुर मिट्टी ) , (iii ) लाल मिट्टी , (iv ) लैटेराइट मिट्टी I अखिल भारतीय मृदा एवं भू उपयोग सर्वेक्षण संगठन द्वारा 1956 में भारतीय मृदाओं को वर्गीकृत करने का प्रयास किया गया वर्ष 1957 में राष्ट्रीय एटलस एवं थीमेटिक संगठन के द्वारा भारत की एक मृदा मानचित्र का प्रकाशन किया गया जिसमें भारतीय मृदाओं को 6 प्रमुख वर्गों और 11 उप वर्गों में वर्गीकृत किया गया I भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा वर्ष 1963 में भारत की एक मृदा मानचित्र प्रकाशित किया गया जिसमें भारत के मृदा को 7 समूहों में विभाजित किया गया I भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के हाल के वर्गीकरण में भारत के मृदाओं को निम्न 10 मृदा समूह में विभाजित किया गया I 


  1. जलोढ़ मिट्टी - भारत में जलोढ़ मिट्टी का विस्तार 143.5 मिलियन वर्ग हेक्टेयर में है जो भारत की सकल सूचित मृदाओं के क्षेत्रफल का 43.36% है I जलोढ़ मिट्टी मुख्यता सतलज , गंगा और ब्रह्मपुत्र के मैदानों में पाई जाती है I जलोढ़ मिट्टी को दो भागों में विभाजित किया गया है I (i ) खादर मिट्टी (ii) भांगर मिट्टी 

  2. लाल मिट्टी - भारत की दूसरी प्रमुख मिट्टी है जो कुल मिट्टी के 18.5% भाग 61 मिली हेक्टेयर में फैली है I जो मुख्यतः प्रायद्वीपीय क्षेत्र में तमिलनाडु से लेकर बुंदेलखंड तक पूर्व में राजमहल से लेकर पश्चिम में काठियावाड़ और कच्छ तक पाई जाती है I आर्कियान ग्रेनाइट के ऊपर विकसित इस मिट्टी को बहुप्रयोजन समूह भी कहा जाता है I इसका रंग मुख्यता लाल है जो इनमें फेरिक ऑक्साइड के कारण होता है I सामान्यता इस मिट्टी की ऊपरी परत लाल इसके नीचे की परत पीलापन भरा होता है I इसकी मृदा संरचना बलुई, चिकनी और दोमट तीनों ही प्रकार का हो सकता हैI  साधारण इस मिट्टी में चूना, फास्फेट, मैग्नीशिया, नाइट्रोजन ,ह्यूमस तथा पोटाश की कमी होती है इस मिट्टी में गेहूं ,कपास ,तंबाकू, दलहन , तिलहन, आलू ,ज्वार एवं फलों की खेती की जाती है I 

  3. काली मिट्टी - काली मिट्टी भारत की तीसरी प्रमुख मिट्टी है काली मिट्टी को रेगुर मिट्टी ,काली कपास  मिट्टी तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उष्णकटिबंधीय चेर्नोजिम इत्यादि नाम से भी जाना जाता है I यह भारत में गुजरात, महाराष्ट्र ,पश्चिम मध्य प्रदेश ,उत्तर-पश्चिमी आंध्र प्रदेश, कर्नाटक ,तमिलनाडु , राजस्थान,  छत्तीसगढ़ और झारखंड में भी पाए जाते हैं I इस मिट्टी का रंग हल्का काला काला होता है सामान्यता इस मिट्टी की संरचना दोमट मिट्टी जैसी है इनमें लोहे , चुने , कैल्शियम, एलुमिनियम तथा मैग्नीशियम की प्रचुरता होती है I इस मिट्टी में कपास ,दलहन, अलसी अरंडी, तंबाकू ,गन्ना एवं नींबू आदि फलों की खेती की जाती है I

  4. मरुस्थलीय मिट्टी - मरुस्थलीय मिट्टी देश की कुल मिट्टी का 4.4% है तथा इसका विस्तार लगभग 15 मिलियन हेक्टेयर में है I यह मिट्टी सामान्यता राजस्थान , अरावली के पश्चिम , उत्तर गुजरात ,सौराष्ट्र, कच्छ, हरियाणा के पश्चिमी भागों तथा पंजाब के दक्षिण पश्चिम भाग में पाया जाता है I  मरुस्थलीय मिट्टी बलुई से लेकर बजरिनुमा है जिनमे जैविक पदार्थों की कमी निम्न है नाइट्रोजन एवं कैल्शियम कार्बोनेट की विधि प्रतिशत तथा पाई जाती हैI  इंदिरा गांधी नहर से प्राप्त जल द्वारा पश्चिमी राजस्थान की मीटिंग का कायापलट हुआ है I इस मिट्टी में समानता दलहन बाजरा चारा दलहन तथा वैसे फसलों की खेती की जाती है जिन्हें जल की आवश्यकता बहुत कम होती है I 

  5.  लेटराइट मिट्टी - लेटराइट मिट्टी जिसका नाम करण लैटिन शब्द लाइटर से हुआ है जिसका अर्थ होता है यह मिट्टी भीगी हुई स्थिति में काफी मुलायम होती है परंतु सूखने के बाद बहुत खड़ा हो जाती है मानसूनी जलवायु तथा मौसमी वर्षा वाले क्षेत्रों की यह विशिष्ट में गाए हैं इन मृदाओं का निर्माण आर्द्र एवं शुष्क की बारंबारता से होने वाले सिलिका में पदार्थों के निक्षालन के परिणाम स्वरूप होता है I  इनमें लोहे के ऑक्साइड की उपस्थिति विषय लाल रंग प्रदान करता है यह मुख्यता पश्चिमी घाट के हिमालय पहाड़ी, पूर्वी घाट राजमहल की पहाड़ी, सतपुड़ा, विंध्य, उड़ीसा छत्तीसगढ़ ,झारखंड, पश्चिम बंगाल पहाड़ी, असम की निकर पहाड़ियों और मेघालय की गारो में पाई जाती है I इन मृदाओं में मुख्यतः लोहे , नाइट्रोजन, चूना, अजैविक पदार्थों की कमी पाई जाती है I चावल , काजू , रागी ,गन्ने और कोदो की खेती होती हैI 

  6. पर्वतीय मृदाए -  पर्वतीय मिट्टी भारत के लगभग 18.2 मिलियन हेक्टेयर भाग में फैली हुई है तथा समस्त मृदाओं में इनकी हिस्सेदारी लगभग 5.5 प्रतिशत है I  यह में हिमालय की घाटियां में ढलानों 2700 से 3000 मीटर की ऊंचाई के बीच के भागों में पाई जाती हैI  इन की संरचना एवं गठन अवसादो दुमट से लेकर दुमट तक है I इनका रंग हल्का गहरा रहता है I पर्वतीय मृदाओं को दो भागों में विभाजित किया गया है (i ) दोमट पौड्जाल और (ii ) उच्च स्थानीय मृदा I 

  7. लाल एवं काली मिट्टी - लाल एवं काली मिट्टी का विस्तार एका के टुकड़ों में है जिनमें बुंदेलखंड तथा अरावली के बीच राजस्थान और गुजरात में देखा जा सकता है I इन मिट्टी में मक्का ,बाजरा ,ज्वार ,दलहन, तिलहन की खेती होती है I इन नेताओं का विकास अर्कियन और पूर्व कैंब्रियन कालों के ग्रेनाइट नाइस और क्वार्टज़जाईट पर हुआ है I 

  8.  धूसर एवं भूरी मिट्टी - धूसर एवं भूरी मिट्टी का निर्माण ग्रेनाइट , नाइस और क्वार्टज़जाईट के अपचयन द्वारा होता है I यह मिट्टी राजस्थान और गुजरात में पाया जाता है I इस मिट्टी में लोहे का ऑक्साइड के कारण लाल या काले या भूरे रंग के रंग प्रदान करता है I 

  9. उप - पर्वतीय मृदाएँ - यह मिट्टी जम्मू कश्मीर से लेकर असम तक तराई प्रदेशों के पर्वतीय भागों में एक संकीर्ण पट्टी के रूप में पाई जाती है I इसका निर्माण शिवालिक एवं लघु हिमालय से प्राप्त अपरदित पदार्थों के निक्षेपो से हुआ है I 

  10. लवणीय एव क्षारीय मृदाए - इस मिट्टी में सोडियम कैल्शियम और मैग्नीशियम के लवणों की उपस्थिति ही इस मिट्टी की विशेषता है I कोशिका क्रिया की भौतिक गतिविधि के कारण मिट्टी की सतह पर सफेद परत सी जम जाती है I देश में इन मिट्टी को विभिन्न स्थानों नामों से जाना जाता है जैसे कल्लर , रेह , उसर , राकर , थुर , कार्ल और चोपान इत्यादि I  यह मृदा राजस्थान, हरियाणा ,पंजाब ,उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में पाई जाती है I इस मिट्टी में नाइट्रोजन तथा कैल्शियम की कमी पाई जाती है I तथा इसकी नमी धारण क्षमता भी काफी कम होती है I 

  11. पिटमय एवं दलदली मृदाएँ - वैसे क्षेत्र जहाँ भारी वर्षा होती है वर्षा जल का उपयुक्त अप्रवाह उपलब्ध नही है वहां पितमय मृदाओं की उत्पति होती है I इनमे जैविक पदार्थो की अधिकत्त होती है और ए उच्च लवानिय है लेकिन इनमे फॉस्फेट और पोटाश की कमी है I 

  12. करेवा मृदाए - करवा मृदा सरोवारिय निक्षेपो से बनी है जो कश्मीर घाटी तथा जम्मू मंडल के डोडा जिले की भद्रवाह घाटी में पायी जाती है I इन मृदाओं क अनिर्मान महीन गाद , दुमट , बालू एवं कंकडो से हुआ है I 

  13. हिम क्षेत्र - भारत में लघभग 4 मिलियन हेक्टेयर भू भाग बर्फ या हिमालयों से ढका है जिन्हें हिमक्षेत्र के नाम से जाना जाता है I वृहत हिमालय की ऊँची चोटियाँ , काराकोरम , लद्धाख , और जास्कर इसके मूल क्षेत्र है I


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