मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य 322 ई पू में किया था ।
नंद वंश का अंतिम शासक घनानंद था जिसको चंद्रगुप्त मौर्य ने हराकर मौर्य वंश की स्थापना किया ।
चंद्रगुप्त मौर्य की संज्ञा का प्राचीनतम अभिलेख के साक्ष्य रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से मिलता है।
चंद्रगुप्त मौर्य एवं सेल्युकस के बीच 305 ई पू में युद्ध होगा था।
चंद्रगुप्त मौर्य को यूनानीयों ने सैंड्रोकॉटोस कहा है ।
मुद्राराक्षस चंद्रगुप्त मौर्य को शूद्र कुल के मानते थे।
सेल्यूकस ने अपने राजदूत मेगास्थनीज को चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा था।
चंद्रगुप्त मौर्य के विभागों अध्यक्ष अमात्य कहलाते थे।
चंद्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री चाणक्य थे। तथा चंद्रगुप्त का जैन गुरु भद्रबाहु था ।
चंद्रगुप्त मौर्य ने अपना शरीर सल्लेखना विधि से त्याग किया था।
पाटलिपुत्र को चंद्रगुप्त मौर्य ने सर्वप्रथम अपनी राजधानी बनाए थे। पाटलिपुत्र में स्थित चंद्रगुप्त का महल मुख्यतः लकड़ी से बना है।
कौटिल्य (चाणक्य) की पुस्तक का नाम अर्थशास्त्र था जो संस्कृत भाषा में लिखा गया था। अर्थशास्त्र में राजनीतिक नीतियां पर प्रकाश डाला गया था।
चंद्रगुप्त मौर्य ने दक्कन पर विजय प्राप्त किया था।
मौर्य काल में जनसाधारण की भाषा पाली तथा मौर्य साम्राज्य में प्रचलित मुद्रा का नाम पन था ।
चंद्रगुप्त मौर्य का पुत्र बिंदुसार 298 ई पु गद्दी पर बैठा था।
बिंदुसार आजीवक संप्रदाय के अनुयाई था।
बिंदुसार का प्रधानमंत्री भी चाणक्य ही थे।
मौर्य साम्राज्य का महानतम शासक अशोक था । अशोक को देवप्रिय या देवानामप्रियदर्शी से भी जाना जाता था ।अशोक का पूरा नाम अशोक वर्धन था।
अशोक ने कलिंग पर विजय 261 ईसा पूर्व में किया था । कलिंग की राजधानी तोसली था । कलिंग हाथियों के लिए प्रसिद्ध था।
कलिंग युद्ध का वर्णन अशोक के 13वें शिलालेख में मिलता है। अशोक के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखी मिलते हैं। अशोक के अभिलेखों को जेम्स प्रिंसेप ने पहली बार 1837 ई में पढ़ा था ।
अशोक के 14 शिलालेखों में सर्वाधिक महत्व 13 वा शिलालेख को प्राप्त है। अशोक के प्रथम शिलालेख में यह घोषणा है कि सभी मनुष्य मेरे बच्चे हैं।
अशोक ने श्रीनगर के स्थापना किया था।
कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने भेरी घोष त्याग कर धम्म घोष अपनाया था ।
अशोक की कर नीति की जानकारी रमीनदेई अभिलेख से प्राप्त होता है।
सांची का स्तूप अशोक ने बनवाया था।
अशोक बौद्ध धर्म अपनाने से पहले भगवान शिव की पूजा करते थे।
अशोक को अशोक को उपगुप्त ने बौद्ध धर्म की शिक्षा दिया था ।
मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहद्रथ था।
चाणक्य, कौटिल्य और विष्णुगुप्त तीनों एक ही व्यक्ति के नाम थे ।
चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में धार्मिक अनुष्ठानों का मंत्री को पुरोहित कहा जाता था।
परिशिष्ट परिवर्तन जैन ग्रंथ में चंद्रगुप्त मौर्य के जैन धर्म अपनाने का उल्लेख मिलता है।
मौर्य काल में सीता का अर्थ राजकीय भूमि से प्राप्त आएगा ।
रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख से यह साबित होता है कि चंद्रगुप्त का प्रभाव पश्चिम भारत तक फैला हुआ था।
मेगास्थनीज ने भारतीय समाज को 7 श्रेणियों में विभाजित किया था।
मौर्य काल में एग्रनोमाई सड़क निर्माण अधिकारी को कहा जाता था ।
भाब्रू स्तंभ में अशोक ने स्वयं को मगध का सम्राट बताया है।
अशोक के प्रमुख शिलालेख एव उनमें वर्णित विषय
पहला - इसमें पशु बलि के भर्त्सना की गई है।
दूसरा - इसमें मनुष्य एवं पशु दोनों की चिकित्सा व्यवस्था का वर्णन किया गया है।
तीसरा - इसमें युक्ताको, राजूको तथा परदेसीको को आदेश दिया गया है कि हर पांचवें वर्ष के उपरांत साम्राज्य के सभी भागों में निरीक्षण के लिए जाएं तथा धर्म के प्रसार हेतु भी कार्य करें।
चौथा - इस लेख में मेरी घोष के जगह धम्म घोष की घोषणा की गई है।
पांचवा - इस शिलालेख में धर्म महापात्रओं की नियुक्ति के विषय में जानकारी मिलती है।
छठा - इसमें सक्षम प्रशासनिक व्यवस्था का वर्णन तथा आत्म नियंत्रण की शिक्षा दी गई है।
सातवां - सभी संप्रदायों के बीच सह अस्तित्व आत्म संयम तथा मानसिक शुद्धता का आवाहन किया गया है।
आठवां - इसमें अशोक की तीर्थ यात्राओं का उल्लेख किया गया है।
नौवा - इसमें सच्ची भेंट तथा सच्चे शिष्टाचार का उल्लेख किया गया है ।
दसवां - इसमें अशोक ने आदेश दिया है की की राजा तथा उच्च अधिकारी हमेशा प्रजा के हित में सोचें।
ग्यारहवा - इसमें धम्म को महिमा प्रदान करना धम्म की प्रशंसा एवं अनुशंसा धम्म में सहयोग एवं धम्म की शिक्षा प्रदान करना बताया गया है।
बारहवां - इसमें स्त्री महापात्रों के नियुक्ति एवं सभी प्रकार के विचारों के सम्मान की बात कही गई है।
तेरहवां - यह अभिलेख अशोक का सबसे लंबा अभिलेख है इसमें कलिंग युद्ध का वर्णन एवं अशोक के हृदय परिवर्तन की बात कही गई है ।
चौदहवां - इसमें अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन बिताने के लिए प्रेरित किया
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